गुरुवार, 1 जून 2017

न मेरी कोई मंज़िल है न किनारा

न मेरी कोई मंज़िल है न किनारा,
 तन्हाई मेरी महफ़िल और यादें मेरा सहारा,
 तुम से बिछड़ कि कुछ यूँ वक़्त गुज़ारा,
 कभी ज़िंदगी को तरसे तो कभी मौत को पुकारा.

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